घरों से दूर कैसे हो रहे हैं वर्क फ्रॉम होम कर रहे लोग?

 

कोरोना महामारी ने इंसानी जीवन में बहुत कुछ बदल दिया है। पूरी दुनिया हाथ मिलाना और गले लगना भूल गई है। हाथ जोड़कर भारतीय अभिवादन की परंपरा दुनिया भर ने अपना ली है। इसी तरह दुनिया भर में वर्क फ्रॉम होम की नई परंपरा शुरू हो गई है। शुरुआत में वर्क फ्रॉम होम ने लोगों को बहुत राहत दी, लेकिन अब एक कड़वी सच्चाई ये सामने आ रही है कि घर पर लगातार दफ्तर के कामकाज की वजह से लोगों का मन घरों से उकताने लगा है।

दो शब्द हैं- घर और मकान

  • अंग्रेज़ी में सामान्यत: घर के लिए HOME और मकान के लिए HOUSE शब्द का इस्तेमाल होता है
  • घर यानी HOME वह होता है, जिसमें आपका दिल परिवार के साथ धड़कता है
  • मकान यानी HOUSE सिर्फ़ ईंटों, कंक्रीट और सरिये से बने ढांचे का ही बोध कराता है।
  • कोरोना काल में दुनिया भर में बहुत सी कंपनियां कर्मचारियों से घर बैठे ही काम ले रही हैं।  वर्क फ्रॉम होम के कई बड़े फ़ायदे भी हैं- जैसे

वर्क फ्रॉम होम के फ़ायदे

 

  • ऑफ़िस आने-जाने का समय और ईंधन बच रहा है।
  • सड़कों पर वाहन कम होने से वायु और ध्वनि प्रदूषण कम हो रहा है।
  • सड़क हादसों की आशंका कम हो रही है।
  • ऑफ़िसों में ख़र्च होने वाली बिजली की बचत हो रही है।
  • छोटे बच्चे वाले अभिभावकों की परेशानियां कम हुई हैं।

    लेकिन लंदन में किया गया सर्वे बताता है कि लगातार वर्क फ्रॉम होम करने की वजह से एक-तिहाई लोगों को अब अपने बेडरूम में पहले की तरह बेफ़िक्री वाला सुकून नहीं मिलता।

कॉमन हेडर- वर्क फ्रॉम होम के साइड इफ़ैक्ट

  • 35 फ़ीसदी लोगों को घर ही अब दफ़्तर जैसा लगने लगा है।
  • 38 प्रतिशत लोग घर से निकलने के बहाने तलाशते रहते हैं, ताकि खुली हवा में सांस ले सकें।
  • 29 फ़ीसदी लोगों को अपना निवासस्थान ‘घर’ नहीं ‘मकान’ जैसा लगने लगा है।

आपको बता दें कि वर्क फ्रॉम होम करने वालों के बिजली और इंटरनेट के बिल बढ़ गए हैं। हालांकि बहुत सी कंपनियां इनकी भरपाई भी कर रही हैं। लेकिन इंसानी जीवनशैली में कुछ बड़े नकारात्मक बदलाव वर्क फ्रॉम होम से हो रहे हैं- जैसे रहन-सहन, खान-पान की आदतों में अनुशासन ख़त्म हो रहा है। सीनियर और जूनियर के बीच अदब की मानसिकता को ठेस लगी है। साथियों के साथ बातचीत कर तनाव बांटने की प्रवृत्ति ख़त्म हो गई है। लेकिन एक बड़ा सवाल और है कि क्या वर्क फ्रॉम होम। टीम स्पिरिट को भी चोट पहुंचा रहा है। ग़ौर करें, तो पाएंगे कि कोई तो ठोस कारण अवश्य रहा होगा, जिसकी वजह से इंसानी दिमाग़ ने बहुत सोच-समझ कर घर और दफ्तर के बीच दूरी कायम की होगी।
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