आज लोगों को बात-बात में ग़ुस्सा आ जाता है। सड़क पर किसी की गाड़ी में ज़रा सी खरोंच दूसरी गाड़ी से लग जाती है, तो इतनी सी बात पर हत्या तक कर देने की ख़बरें पढ़ने-देखने को मिल जाती हैं। इसकी एक बड़ी वजह तो ये है कि आज के कठिन हालात में व्यक्ति आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं। उन्हें बस अपनी और बेहद क़रीबी अपनों की ही चिंता है, दूसरों की नहीं। व्यक्ति के गुस्से में रहने की दूसरी बड़ी वजह क्या है, आइए जानते हैं टॉस की इस रिपोर्ट में-
हाल ही में प्रकाशित एक सरकारी रिपोर्ट के आंकड़े चौंकाते हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय परिवार कल्याण सर्वे के तहत पहली बार हाई ब्लड प्रैशर और हाइपरटेंशन के आंकड़े जुटाए हैं। 17 राज्यों में किए गए इस अध्ययन के आंकड़ों के अनुसार
– भारत की क़रीब एक चौथाई आबादी हाई ब्लड प्रेशर की समस्या से पीड़ित है
– 15 साल के ज़्यादा उम्र के 25 फ़ीसदी लोग इस बीमारी के शिकार हैं
– सिक्किम में सबसे ज़्यादा 41.6 प्रतिशत पुरुष और 34.5 प्रतिशत महिलाएं हाइपरटेंशन की शिकार हैं
– केरल दूसरे नंबर पर है, वहां 32.8 फ़ीसदी पुरुष और 30.9 फ़ीसदी महिलाएं हाइपरटेंशन की चपेट में हैं
– तेलंगाना तीसरे नंबर पर है, वहां 31.4 प्रतिशत पुरुष और 26.1 प्रतिशत महिलाएं इस बीमारी से पीड़ित हैं
– बिहार में सबसे कम 18.4 प्रतिशत पुरुष और 15.9 प्रतिशत महिलाएं हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं
– सर्वे उन पर किया गया, जिनका ब्लड प्रेशर 90/140 था और जो दवाएं ले रहे हैं
आमतौर पर माना जाता है कि शहरों के मुक़ाबले ग्रामीण जीवन ज्यादा सेहतमंद होता है। बहुत से मानकों पर ये सही भी कहा जा सकता है, लेकिन हाई ब्लड प्रेशर के मामलों में ये बात चौंकाती है कि शहरी और ग्रामीण, दोनों आबादियों में ये समस्या एक जैसी ही है।
(चिंताजनक बात ये है कि)
– असम, सिक्किम, नगालैंड, गोवा और केरल में शहरों के मुक़ाबले गांवों में हाई ब्लड प्रेशर के ज़्यादा मरीज़ हैं
ज़ाहिर है कि भारत जैसे श्रमशील देश में जीवन शैली में बड़े बदलाव की सख़्त ज़रूरत है। शुगर यानी मधुमेह और हाई ब्लड प्रेशर यानी उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियां मूल रूप से बिगड़ी दिनचर्या और असंतुलित खानपान के कारण हो जाती हैं। ऐसे में योग जैसी पुरातन स्वास्थ्य पद्धति को तुरंत अपनाने की ज़रूरत है। बड़ी आबादी जीवन पर्यंत रहने वाली बीमारियों से ग्रसित रहेगी, तो इससे देश की तरक्की में बाधा आएगी। इसलिए केंद्र और राज्य सरकारों को इस बारे में फ़ैसले करने में देर नहीं लगानी चाहिए। टॉस की राय है कि योग को अनिवार्य रूप से प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
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