कोरोना को लेकर भारत में जमकर राजनीति हो रही है।
– बीजेपी का आरोप है कि विपक्ष टूलकिट बना कर देश को बदनाम करने की साज़िश कर रहा है, कांग्रेस इसे बीजेपी की चाल बता रही है
– भारत में मिले कोविड-19 के नए स्ट्रेन को इंडियन वैरिएंट की तरह पेश किया जा रहा है, जबकि ऐसा नामकरण डब्ल्यूएचओ ने नहीं किया है
– बीजेपी का आरोप है कि सोशल मीडिया पर कोविड-19 के नए स्ट्रेन का नामकरण मोदी स्ट्रेन की तरह करने की साज़िश हो रही है
हर भारतीय को ये भी जानना चाहिए कि डब्ल्यूएचओ तक ने भारत समेत किसी देश के नाम पर कोरोना के किसी स्ट्रेन का नामकरण नहीं किया है। लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत कुछ नेता लगातार भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। कोविड-19 के कथित इंडियन वैरिएंट पर डब्ल्यूएचओ का दक्षिण पूर्व एशिया कार्यालय 12 मई, 2021 को ख़ुद ट्वीट जारी कर साफ़ कर चुका है कि-
डब्ल्यूएचओ साउथ ईस्ट एशिया
“डब्ल्यूएचओ उन देशों के नाम के साथ वायरस या वैरिएंट की पहचान नहीं करता है, जहां वे सबसे पहले रिपोर्ट किए गए हैं। हम उन्हें उनके वैज्ञानिक नामों से ही रैफ़र करते हैं और आप सबसे भी ऐसा ही करने का अनुरोध करते हैं।”
लेकिन 18 मई को अरविंद केजरीवाल ने कोविड-19 के कथित सिंगापुर वैरिएंट का ज़िक्र कर फिर से विवाद पैदा कर दिया। क्या उन्हें ऐसा करना चाहिए था-
– जबकि वे केवल केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, भारत के विदेश मंत्री नहीं
– उन्हें अगर अपनी बात कहनी थी, तो विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिख सकते थे, या विदेश मंत्री से मिलकर चिंता जता सकते थे
– भारत को किसी मुख्यमंत्री को संदेश देना पड़े कि विश्व बिरादरी में वह भारत की आधिकारिक नुमाइंदगी नहीं करता, तो यह कितना अजीब है
– कोई देश हमारे किसी सीएम को तथ्यों पर आधारित बात रखने की नसीहत दे और वह सीएम चुप रह जाए, यह अपमानजनक नहीं, तो क्या है?
– फिर भी केजरीवाल बाज़ नहीं आएंगे
– पहले ऑक्सीज़न की कमी, फिर टीके की कमी और फिर सिंगापुर स्ट्रेन की ‘बेबुनियाद’ बात कर वे प्रचार ही कर रहे हैं
– सुविधाएं जुटाने के बजाए अपने विज्ञापनों पर ख़ज़ाना लुटाने के आरोपों का केजरीवाल कोई जवाब नहीं देते
– केजरीवाल के पास इस आरोप का भी कोई जवाब नहीं है कि दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक कोरोना उपचार के किसी काम क्यों नहीं आए?
लेकिन वे विवादास्पद बयान जारी किए जा रहे हैं। सिंगापुर को लेकर केजरीवाल के बयान पर वहां के विदेश मंत्रालय ने तुरंत विरोध जताया। बाद में भारत सरकार को भी इस पर सफ़ाई देनी पड़ी।
टॉस का मानना है कि जब पूरा देश किसी संकट का सामना कर रहा हो, तब राजनैतिक पार्टियों को अपने स्वार्थ छोड़कर उस संकट से निपटने में मदद करनी चाहिए। हर परिस्थिति का इस्तेमाल अपनी राजनीति चमकाने के लिए करना सही नहीं हो सकता। पहले इंसानियत को बचाइए, फिर राजनीति करिए।
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