अमेरिका में पढ़ाई करने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं की क्या है नई मुसीबत?

कोरोना को लेकर भारत में ही नहीं, दुनिया भर में राजनीति और कूटनीति शुरू हो गई है। कोवैक्सीन या स्पूतनिक-वी टीके लगवा कर अमेरिका में पढ़ने के ख़्वाहिशमंद भारतीय छात्र-छात्राओं के लिए मुश्किल खड़ी हो गई है। अमेरिका ने इन दोनों ही टीकों को फिलहाल मान्यता नहीं दी है। ऐसे छात्र-छात्राओं को दूसरे टीके लगवाने होंगे।

– अमेरिका के 400 से ज़्यादा विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लिए नई टीकाकरण नीति घोषित की गई है
– नीति में भारत के कोवैक्सीन और रूस के स्पूतनिक-वी टीके को मान्यता नहीं दी गई है, ये टीके लगवाने वालों को दोबारा टीकाकरण कराना होगा
– अमेरिका के इस फ़ैसले से भारतीय छात्र-छात्राएं दुविधा में हैं
– सबसे ज़्यादा दुविधा इस बात को लेकर है कि दो अलग-अलग टीके लगवाने से कोई परेशानी तो नहीं होगी

अमेरिका की दलील है कि उन टीकों को मान्यता नहीं दी जाएगी, जिन्हें विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंज़ूरी नहीं दी है। कोवैक्सीन और स्पूतनिक-वी के टीकों को मंज़ूरी मिलने की प्रक्रिया जारी है। ज़ाहिर है कि इस फ़ैसले से भारत और रूस के उन विद्यार्थियों की परेशानी बढ़ गई है, जो अमेरिका में पढ़ने के तलबग़ार हैं।

– भारत से हर साल क़रीब दो लाख विद्यार्थी अध्ययन के लिए अमेरिका जाते हैं

इस बीच भारत सरकार ने साफ़ किया है कि भारत बायोटैक के कौवैक्सीन टीके को मान्यता दिलाने के लिए WHO को आंकड़े भेज दिए गए हैं और जल्द ही अड़चन दूर कर ली जाएगी। कोवैक्सीन से जुड़े 90 प्रतिशत दस्तावेज़ अप्रैल में WHO में जमा कराए गए हैं। बाक़ी काग़ज़ात भी जल्द जमा कराए जाने हैं।
अब बात करते हैं रूस के टीके स्पूतनिक-वी की।

– रूस में बना स्पूतनिक-वी टीका अभी तक भारत समेत 65 देशों ने पंजीकृत किया है
– महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने कहा है कि UN स्पूतनिक-वी को WHO से मान्यता मिलने का स्वागत करेगा
– स्पूतनिक-वी को अमेरिका के फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी मान्यता नहीं दी है
– अमेरिका के इस निर्णय के लिए आर्थिक औ राजनैतिक कारण माने जा रहे हैं
– माना जा रहा है कि अमेरिका अपने देश में बने टीकों को ही विश्व में बढ़ावा देने के पक्ष में है

लेकिन कोविड-19 के किसी भी टीके को WHO से मंज़ूरी मिलने के बाद अमेरिका को भी उसे मंज़ूरी देनी पड़ सकती है। पूर्ववर्ती अमेरिका प्रशासन की नीति बिल्कुल स्पष्ट थी। ट्रंप प्रशासन ने WHO से पल्ला झाड़ लिया था, लेकिन बाइडेन प्रशासन उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएगा। इसलिए अमेरिका में पढ़ाई के इच्छुक छात्र-छात्राओं की मुसीबत जल्द दूर होने की संभावना है।

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