राहुल गांधी ने 46 साल बाद दादी इंदिरा गांधी की क्या ग़लती कुबूल की?

भारत में आजकल इमरजेंसी फिर से चर्चा में है। कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राहुल गांधी ने एक इंटरव्यू में इमरजेंसी लगाने के अपनी दादी इंदिरा गांधी के फ़ैसले को ग़लती करार दिया है। इस पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। हालांकि राहुल ने ये भी कहा कि इमरजेंसी के समय जो कुछ हुआ था, आज हालात उससे कहीं ज़्यादा ख़राब हैं। ज़ाहिर है कि भारतीय जनता पार्टी को राहुल का ये बयान रास नहीं आया है।

– 25 जून, 2021 को भारत में इमरजेंसी यानी आपातकाल लगाए जाने के 46 साल पूरे हो रहे हैं
– आधी रात को तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इमरजेंसी के फ़ैसले पर दस्तख़त किए थे
– इमरजेंसी 21 मार्च, 1977 तक लागू रही, यानी देश के लोकतंत्र को 21 महीने तक बंधक रहना पड़ा
– इमरजेंसी के 21 महीनों को लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय करार दिया गया

अब अगर राहुल गांधी भी इमरजेंसी को ग़लती मान रहे हैं, तो ज़ाहिर है कि इमरजेंसी के दौरान किए गए कामों पर भी उन्हें अफ़सोस होगा। तो क्या इमरजेंसी के दौरान की गई ग़लतियों को अब सुधार दिया जाना चाहिए?

– इमरजेंसी के दौरान सबसे बड़ा फ़ैसला भारतीय संविधान के मूल चरित्र को बदलना ही था
– तो क्या अब संविधान के मूल चरित्र को बरक़रार रखने का उचित समय आ गया है?
– संविधान सभा के 299 सदस्यों ने भारत को संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया था
– 11 नवंबर, 1976 को इंदिरा गांधी सरकार ने संसद में 42वां संविधान संशोधन पारित कराया
– 3 जनवरी, 1977 को यह संविधान संशोधन लागू हो गया
– 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए प्रस्तावना में ‘सैक्युलर’ और ‘सोशलिस्ट’ शब्द जोड़े गए
– इन शब्दों की कोई परिभाषा या व्याख्या तय नहीं की गई
– 42वां संविधान संशोधन लागू होने के साथ ही देश में तुष्टीकरण की राजनीति का उदय हुआ
– इसका ही नतीजा है कि आज देश भर में कांग्रेस पार्टी बुरी तरह हाशिये पर सिमट चुकी है

कांग्रेस को अगर मज़बूत होकर उभरना है, तो उसे तुष्टीकरण जैसी मौक़ापरस्त नीतियों से पल्ला झाड़ना होगा। ज़रूरत इस बात की भी है कि सैक्युलर जैसे शब्दों का अनुवाद धर्मनिरपेक्ष नहीं किया जाए। सही शब्द है पंथ-निरपेक्ष। कांग्रेस को राष्ट्रीयता की पोषक पार्टी के तौर पर भी अपनी छवि नए सिरे से गढ़नी होगी।

– भारतीय संदर्भ में धर्म का अर्थ अंग्रेज़ी का रिलीज़न नहीं होता, बल्कि कर्तव्य होता है
– यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट का आधिकारिक मोटो है- यतो धर्मस्ततो जय: यानी धर्म का अर्थ है न्याय
– इसी तरह लोकसभा का मोटो है- धर्मचक्र प्रवर्तनाय, यानी धर्म चक्र चलाने के लिए सदन, यहां किसी रिलीज़न की बात नहीं है

कुल मिलाकर इमरजेंसी अगर ग़लती थी, तो उसके दौरान किए गए ग़लत कामों को वापस ले लिया जाए, तो ग़लत नहीं होगा।

– 42वें संविधान संशोधन के ज़रिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की शक्तियां कम कर दी गई थीं, जो 1997 में बहाल की गईं
– इसी तरह संविधान संशोधन विधेयकों को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया गया था

इमरजेंसी के दौरान ही इंदिरा गांधी ने 39वां संविधान संशोधन लाकर ऱाष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष से जुड़े विवाद कोर्ट के क्षेत्राधिकार से बाहर कर दिए थे, जो बाद में बहाल किए गए। तो क्या अब संविधान की मूल प्रस्तावना को बहाल करने का उचित समय है?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *