सर्वदलीय बैठक के बाद विपक्ष के सवालों पर पीएमओ को साफ़ करना पड़ा कि प्रधानमंत्री ने बैठक में ज़ोर दिया कि अतीत की उपेक्षा के विपरीत, भारतीय सेना एलएसी के किसी भी उल्लंघन का मुक़ाबला निर्णायक रूप से और दृढ़ता से करती है। प्रधानमंत्री ने सशस्त्र बलों को उनकी वीरता के लिए श्रद्धांजलि दी, जिन्होंने चीन के इरादों को नाकाम किया। ऑल पार्टी मीटिंग को बताया गया कि
पिछले 60 वर्षों में भारत ने 43,000 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र किन हालात में खोया? सर्वदलीय बैठक से पहले और उसके बाद भी चीन को लेकर राहुल गांधी केंद्र सरकार पर लगातार हमले कर रहे हैं।
टॉस के पास 6 सितंबर, 2013 को लोकसभा की कार्यवाही का ब्योरा है। तब कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटनी थे। 6 सितंबर, 2013 को एलएसी पर चीन के आक्रामक रुख़ पर बहस हुई, तो तब बीजेपी सांसद यशवंत सिन्हा ने लद्दाख में चीनी अतिक्रमण से संबंध में पेश हुई श्याम शरण रिपोर्ट को लोकर सरकार पर ग़लतबयानी का आरोप लगाया था।
यशवंत सिन्हा के अनुसार 1959 में नेहरू को लिखे पत्र में चीनी पीएम ने अपनी LAC का ज़िक्र किया था, चीन वहीं अटका हुआ है ।
जबकि भारत 1962 के युद्ध के बाद बनी स्थिति के हिसाब से LAC का आकलन करता है तब विपक्षी नेता यशवंत सिन्हा ने मनमोहन सरकार से वही सवाल पूछा था, जो अब विपक्ष मोदी सरकार से पूछ रहा है कि चीन ने हमारी सीमा का अतिक्रमण किया है या नहीं? साफ़ है कि केंद्र में सरकारें बदल गई हैं, लेकिन पक्ष-विपक्ष का रवैया वही है। आज गलवान घाटी चर्चा में है, उस समय डिपसांग बल्ज चर्चा में था। सवाल तब भी वही थे, जो आज हैं।
पूर्व रक्षा मंत्री मुलायम सिंह यादव ने भी एक बार कहा था कि चीन जितना धोख़ेबाज़ देश दुनिया में कोई दूसरा नहीं है।
लोक सभा में पूर्व रक्षा मंत्री अंटोनी साहब बोले थे, ”मुझे हक़ीक़त स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं है कि एलएसी के पास बुनियादी ढांचे के निर्माण के मामले में चीन, भारत से कहीं आगे है। इतिहास है कि आजाद भारत में बहुत वर्षों तक नीति रही कि सीमा का विकास नहीं करना ही सबसे बड़ी सुरक्षा है। विकसित सीमा के मुक़ाबले अविकसित सीमा ज़्यादा सुरक्षित रहेगी, लिहाजा बहुत वर्षों तक सीमा के आसपास न सड़कें बनीं, न एयर फील्ड बने। लेकिन चीन निर्माण करता रहा। नतीजा यह रहा कि वे हमसे काफ़ी आगे निकल गए। मैं इसे स्वीकार करता हूं।”
ताज्जुब है कि वे कह रहे हैं कि आज़ादी के बाद से सीमा पर विकास नहीं करना ही ऐतिहासिक रूप से सुरक्षा नीति रही। शुरुआती सरकारों का मानना था कि सीमाएं अविकसित रहेंगी, तो ज्यादा सुरक्षित रहेंगी।
ज़रा सोचिए कि क्या यह नीति सही हो सकती है?… आज़ादी के बाद केंद्र में क़रीब 55 साल के दौरान कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें रही हैं। अविकसित सीमा का सिद्धांत क्या देश के गले उतर सकता है?
अब उसी कांग्रेस के नेता एलएसी पर भारत की नीति पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस सरकारों की शुरुआती नीति के उलट अब मोदी सरकार काम कर रही है, तो ऐतराज़ क्यों है? राष्ट्रहित की बात पर नैतिक समर्थन नहीं कर सकते, तो चुप रहिए। टॉस की राय है कि सीमाओं के मामल में पार्टी पॉलिटिक्स भुलाकर देशहित की बात एकसुर से की जाए।
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