प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी की 73वीं सालगिरह पर लालक़िले की प्राचीर से देश के हर नागरिक के लिए नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के तहत यूनीक हेल्थ आईडी जारी करने का ऐलान किया। इसका मक़सद देश के लोगों की सेहत से जुड़ी जानकारी जुटाकर बेहतर हेल्थकेयर की दिशा में क़दम आगे बढ़ाना है। लेकिन क्या ये योजना स्वस्थ भारत का लक्ष्य हासिल करने के लिए मील का पत्थर साबित हो पाएगी? हम जानते हैं कि अगर देश के सभी लोगों का स्वास्थ्य सही रहे, तो ग़रीबी उन्मूलन का लक्ष्य भी तेज़ी से प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन किसी भी योजना का सिर्फ़ सरकार के बूते कामयाब हो पाना संभव है?
आगामी समय में आपके वॉलेट या बटुए में एक और कार्ड शामिल हो जाएगा। वैसे तो दफ़्तर का आईडी कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, पैन कार्ड, आधार कार्ड और क्रेडिट या डेबिट कार्ड आपकी ज़िंदगी में रोज़मर्रा के कामकाज में ज़रूरी से हो गए हैं, लेकिन इससे कहीं ज़्यादा ये नया नेशनल हेल्थ आईडी कार्ड आपकी ज़िंदगी से सीधे जुड़ा होगा। इस हेल्थ कार्ड में देश के हर नागरिक की बीमारी, टेस्ट, डॉक्टर की जानकारी और ट्रीटमेंट से जुड़ा सारा ब्यौरा दर्ज होगा। मतलब ये हुआ कि ये कार्ड बन जाने के बाद कोई भी देश के किसी भी हिस्से में ज़रूरत पड़ने पर अपना इलाज कराने जाएगा, तो उसे डॉक्टरों के पर्चे, टेस्ट रिपोर्ट वगैरह ले जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि कार्ड में सारी जानकारी उपलब्ध होगी।
नेशनल हेल्थ कार्ड बनवाने के लिए आपको कहीं जाना नहीं पड़ेगा, बल्कि आप ख़ुद ही इसे बनाएंगे। हेल्थ कार्ड को अपने मोबाइल नंबर या आधार नंबर से लिंक करना पड़ेगा। कोई भी अस्पताल या डॉक्टर इसके ज़रिए आपकी मेडिकल हिस्ट्री जान सकेगा। इस हेल्थ कार्ड से सबसे बड़ा फ़ायदा ये होगा कि अगर मरीज़ के साथ कोई घर वाला नहीं है या फिर मरीज़ ख़ुद कुछ बता पाने की स्थिति में नहीं है, तो भी इलाज करने वाले डॉक्टर को उसके मेडिकल इतिहास के बारे में सब कुछ पता चल जाएगा। इससे ग़लत इलाज़ की आशंका बहुत कम हो जाएगी।
यूनीक हेल्थ आईडी सिस्टम से न केवल लोगों को इलाज में सुविधा होगी, बल्कि हेल्थ इंश्योरेंस को और ज़्यादा पारदर्शी बनाने में मदद मिलेगी। एक ख़ास बात और जान लीजिए कि अगर किसी के पास हेल्थ आईडी नहीं है, तो भी उसे इलाज से वंचित नहीं किया जाएगा। शुरुआत में ये योजना छह केंद्र शासित राज्यों में लागू की जा रही है। बाद में दूसरे राज्य भी इसे लागू कर सकेंगे। लेकिन उन राज्यों का क्या, जिन्होंने आयुष्मान भारत जैसी केंद्र की कई योजनाएं अभी तक केवल इसलिए लागू नहीं की हैं, क्योंकि उन्हें हर हाल में मोदी सरकार का विरोध ही करना है।
अब ज़रा मोदी सरकार की इसी तरह की जीवन संवारने वाली एक और महात्वाकांक्षी योजना पर नज़र डाल लेते हैं। केंद्र में मोदी सरकार आने के दूसरे साल 19 फरवरी, 2015 को खेतों की मिट्टी को सेहतमंद बनाने के लिए सॉयल हेल्थ कार्ड योजना शुरू की गई थी।
-वर्ष 2015 से 2017 तक केंद्र सरकार ने किसानों को 10.74 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड जारी किए
-वर्ष 2017 से 2019 तक 11.69 करोड़ सॉयल हेल्थ कार्ड किसानों को जारी किए गए
-रासायनिक खाद के इस्तेमाल में 8-10 फ़ीसदी कमी आई
-कृषि उपज में 5-6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
नेशनल प्रोडक्टिविटी काउंसिल यानी एनपीसी के अनुसार सॉयल हेल्थ कार्ड पर दी गई सलाह के बाद रासायनिक खाद के इस्तेमाल में 8 से 10 फ़ीसदी तक कमी और उपज में 5 से 6 फ़ीसदी तक बढ़ोतरी हुई।
हालांकि इस योजना के आलोचक भी कम नहीं हैं। सॉयल कंजरवेशन सोसायटी ऑफ़ इंडिया और वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ़ सॉयल एंड वाटर कंजरवेशन की ओर से 2019 में दिल्ली में कराए गए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इस योजना की ख़ामियों पर भी चर्चा की गई। एक बड़ी ख़ामी ये बताई गई कि मिट्टी की सेहत के परीक्षण के लिए देश में प्रयोगशालाओं की संख्या बहुत कम है। मिट्टी में सूक्ष्म तत्वों के परीक्षण जैसी सुविधाएं नहीं के बराबर हैं।
कुल मिलाकर ये सही है कि सरकार कोई योजना कितनी भी फुलप्रूफ़ और जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत होकर बनाए, वो शत-प्रतिशत तभी सफल हो सकती है, जब उत्तरदायित्व पूर्ण जन-भागीदारी हो, प्रोत्साहन का कोई सकारात्मक मैकेनिज़्म हो, फ़ॉलोअप का सटीक तंत्र हो। मिट्टी को सेहतमंद बनाने की योजना के बाद अब मोदी सरकार इंसानों की सेहत का व्यवस्थित ब्यौरा तैयार करने की योजना लाई है, तो इसका स्वागत करना चाहिए। लेकिन वे लोग कैसे हेल्थ कार्ड बनाएंगे, जिनके पास इंटरनेट नहीं है, कंप्यूटर नहीं है? तमाम प्रयासों के बाद भी डिजिटल क्रांति जिनसे कोसों दूर है, वे क्या करेंगे? पुरानी बीमारी और इलाज का ब्यौरा वे पढ़े-लिखे भी कैसे भर पाएंगे, जिनके लिए डॉक्टरों की लिखावट काला अक्षर भैंस बराबर है।
साल 2005 में ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस यानी एन-एच-एस ने इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड सिस्टम शुरू किया था। लक्ष्य ये था कि वर्ष 2010 तक देश के हर नागरिक का इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड जुटा लिया जाएगा। इस मक़सद से बहुत से अस्पतालों ने इलेक्ट्रॉनिक पेशेंट रिकॉर्ड सिस्टम विकसित करने पर काफ़ी पैसे लगाए। लेकिन अस्पतालों के बीच कोई तालमेल नहीं था। आख़िरकार बहुत सी तकनीकी और व्यावहारिक दिक्कतों की वजह से 12 अरब पौंड ख़र्च हो जाने के बाद सरकार को ये कार्यक्रम बंद करना पड़ा। ज़ाहिर है कि मोदी सरकार ने ऐसे और भी उदाहरणों पर ग़ौर ज़रूर किया होगा।
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