कश्मीर घाटी के नौजवान अब छोड़ रहे हैं मौत का साथ और चल रहे हैं भारत के साथ ! जनिए क्यूँ

 

दिल्ली में लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एलएसी से लेकर एलओसी तक विस्तारवाद और आतंकवाद को करारा जवाब देने की भारतीय इच्छाशक्ति का इज़हार फिर से कर दुनिया को स्पष्ट संदेश दिया है। जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के एक साल बाद कश्मीर घाटी में आतंक को मुंहतोड़ जवाब देने का सिलसिला ज़ोरों पर है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या आतंकवाद का ख़ात्मा सीमा पार से आए आतंकियों और घाटी के गुमराह हथियारबंद युवाओं के समूल ख़ात्मे की रणनीति से ही संभव हो पाएगा… जी नहीं… ऑपरेशन ऑलआउट के साथ ही इसके लिए बहुआयामी नीति की ज़रूरत है और घाटी में सुरक्षा बल इस ओर पूरी तन्मयता, चौकन्नेपन और संवेदनशीलता से काम कर रहे हैं। इससे कश्मीर घाटी में विश्वास बहाली का नया दौर शुरू हुआ है।

 बुरहान मुज़फ़्फर वानी हिज़्बुल मुजाहिदीन का कमांडर

आतंक के इस पहले पोस्टर ब्वाय को सुरक्षा बलों ने 8 जुलाई, 2016 को मुठभेड़ में मौत के घाट उतार दिया। उसके जनाज़े में उमड़ी भीड़ ने घाटी में आतंक के ग्लैमरस चेहरे का नया अध्याय खोल दिया। फ़ौज जैसी वर्दी और अत्याधुनिक हथियारों से लैस बुरहान वानी की सोशल मीडिया पर मौजूदगी ने घाटी के युवाओं को ख़ासा गुमराह किया। घाटी के कई अपरिपक्व नौजवान आतंकी संगठनों के चंगुल में फंसने लगे। आज के दौर में सुरक्षा बलों ने आतंकियों के क़रीब-क़रीब सभी पोस्टर ब्वाय को जहन्नुम पहुंचा दिया है, लेकिन आतंक का ऊबड़ खाबड़ ख़ूनी रास्ता अब भी कई असंतुष्ट युवकों को अपनी ओर खींच रहा है, तो सुरक्षा बलों ने भी बहुआयामी नीति अपना ली है।

आतंकियों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी त्वरित कार्रवाई से उनमें दहशत भरने के साथ ही सुरक्षा बल प्रीति का संदेश भी दे रहे हैं। ”भय बिनु प्रीति न होय गुसाईं” की नीति घाटी में अमन की राह बुहारने लगी है। ख़ास तौर पर वे परिवार सुरक्षा बलों पर जी-जान से भरोसा करने लगे हैं, जिनके नौजवान बेटे गुमराह होकर आतंकी गुटों में शामिल होने के लिए घरों से निकल गए थे, लेकिन चंद दिनों बाद ही वे वापस घरों की सुरक्षित दहलीज़ों पर लौट आए हैं। बारूदी रास्ते छोड़कर वापस मांओं के नर्म प्यार भरे आंचलों में आ दुबके हैं।

पिछले एक-दो वर्षों से सुरक्षा बलों को आतंकियों के बारे में स्थानीय कश्मीरियों से पुख़्ता इनपुट मिलने लगे हैं। बिना विश्वास बहाली के ये संभव नहीं था।

इस साल सुरक्षा बलों ने आतंकी संगठनों में नए भर्ती हुए 22 कश्मीरी युवाओं को ज़िंदा पकड़ा है। इस नर्म रुख़ की वजह से घाटी के अमन पसंद लोगों में भरोसा बढ़ा है।
सुरक्षा बलों की रहम दिली की वजह से हथियार थाम चुके 16 नौजवान पिछले दिनों घर लौट आए हैं। सुरक्षा बलों ने उनके माता-पिता को राज़ी किया कि अगर उनके बेटे उनके कहने पर लौट आते हैं, तो उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की जाएगी। ऐसे युवाओं की निगरानी ज़रूर की जाती है, लेकिन उन्हें माफ़ कर दिया जाता है।

कश्मीर में तैनात सेना बड़े पैमाने पर ऑपरेशन सद्भावना चला रही है, जिसके तहत दूर-दराज़ के इलाक़ों में स्वास्थ्य केंद्र और स्कूल चलाए जा रहे हैं। खेलों और रोज़गार की ट्रेनिंग दी जा रही है। कश्मीर घाटी का माहौल बदल रहा है। सेना में भर्ती के लिए होने वाली रैलियों में घाटी के युवाओं की भीड़ देखकर ही ये अंदाज़ लगाया जा सकता है।

टॉस का मानना है कि भारतीय सेना, अर्धसैनिक बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस गोला-बारूद का जवाब देने में किसी से पीछे नहीं हैं, लेकिन प्यार की भाषा की ताक़त के इस्तेमाल में भी किसी से पीछे नहीं हैं। आतंकवाद के आका माता-पिता और दूसरे परिवार वालों को जान से मारने की धमकी देकर बहुत से नौजवानों को मजबूरन बंदूकें थामने को मजबूर कर देते हैं, लेकिन अब सुरक्षा बलों की बदली रणनीति की वजह से घाटी के नौजवानों का हौसला बढ़ा है और वे बर्बादी का रास्ता छोड़ कर मुख्यधारा में रह कर तरक्की की राहों पर चलना ही मुनासिब समझ रहे हैं।

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