जम्मू-कश्मीर में सियासी फ़ज़ा बदल रही है, ये समझने के लिए वहां चल रहे ज़िला विकास परिषदों के चुनाव में हुई वोटिंग को मज़बूत आधार बनाया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर की 20 ज़िला विकास परिषदों के लिए चुनाव हुए। सभी चरणों में वोटों की बंपर बरसात ने साबित कर दिया है कि जम्मू और कश्मीर, दोनों ही जगहों पर लोग मुख्यधारा में शामिल होने का जश्न मना रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बने एक साल से ज़्यादा का वक़्त हो चुका है। वहां की क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टियां जहां अनुच्छेद 370 की बहाली के लिए आंदोलन चलाने पर आमादा हैं, लेकिन वहां के आम आदमी ने मोदी सरकार के फ़ैसले पर मुहर लगा दी है। नई व्यवस्था में पहली बार हो रहे ज़िला विकास परिषदों के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत पर नज़र डालें, तो ये बात सही साबित होती है।
– डीडीसी चुनाव के पहले चरण में जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों में कुल 52 प्रतिशत वोट पड़े
– दूसरे चरण के चुनाव में क़रीब 49 प्रतिशत वोट डाले गए
– तीसरे चरण में दोनों क्षेत्रं में 50.53 प्रतिशत वोटरों ने मताधिकार का इस्तेमाल किया
– डीडीसी चुनाव के चौथे चरण में 50.08 प्रतिशत वोट डाले गए
– चौथे चरण में कश्मीर के गांदरबल में सबसे ज़्यादा 56.28 प्रतिशत वोट पड़े
– पांचवें चरण में 51.20 प्रतिशत लोगों ने वोड डाले
– छठवें चरण में कुल 51.51 प्रतिशत वोट पड़े
– सातवें चरण में कुल 57.22 फ़ीसदी वोटरों ने मतदान किया
– आठवें चरण में जम्मू और कश्मीर क्षेत्रों में क़रीब 51 फ़ीसदी वोट पड़े
पूरे चुनाव में कहीं से उल्लेखनीय ख़ून-ख़राबे की ख़बर नहीं आई। ये भी जम्मू-कश्मीर की बदली परिस्थितियों के सकारात्मक दिशा में जाने का ही पुख़्ता सुबूत है। घाटी के आतंक प्रभावित ज़िलों में पिछले चुनावों के मुक़ाबले सियासी हलचल बढ़ी हुई नज़र आई। लोग बेख़ौफ़ होकर वोट डालने निकले। न तो उन्हें आतंकियों का डर था, न ही कड़कड़ाती सर्दी उन्हें घरों में रोक पाई।
– अप्रैल, 2019 में श्रीनगर लोकसभा सीट पर चुनाव में कुल 14.1 प्रतिशत वोट पड़े थे
– साल 2017 के उपचुनाव में श्रीनगर लोकसभा सीट पर 7.12 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी
साफ़ है कि कश्मीर में कश्मीरियत, इंसानियत और जम्हूरियत की साफ़ शफ़्फ़ाफ़ हवा बहने लगी है। जैसे-जैसे समय बीतेगा, लोग पुराने लहूलुहान दौर को भूलते जाएंगे और वहां विकास के नए दौर की नींव और पुख़्ता होती जाएगी। 2020 के आख़िरी लम्हों में भारतीय जनता पार्टी ने भी पहली बार कश्मीर घाटी में सियासी ख़ेमा ठोक दिया है। धरती की जन्नत कश्मीर घाटी अपनी पुरानी शान-ओ-शौक़त में लौटेगी, तो वहां पर्यटन उद्योग भी नए सिरे से परवान चढ़ेगा। कश्मीर के बाशिंदे नई हवा में सांस ले सकेंगे। इसके साफ़ संकेत ज़िला विकास परिषदों के चुनाव ने दे दिए हैं।
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