क्या लाठी भी है हथियार? क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?
लाठी शब्द कान में पड़ते ही आपके ज़ेहन में किसकी तस्वीर उभरती है… शायद महात्मा गांधी की तस्वीर, एक उम्र के बाद जो चलते वक़्त लाठी का सहारा लिया करते थे। लाठी शब्द सुनते ही मेरे मन में मेरे बाबा की तस्वीर उभरती है, साथ ही गांव के सभी उम्रदराज़ लोगों के साथ उन ग्रामीण युवाओं की तस्वीर भी मन में उभरती है, जो रात-बिरात खेती के काम में लगे होते हैं। कुल मिलाकर लाठी ग्रामीण जीवन के अनिवार्य प्रतीक चिन्ह की तरह है।
ग्रामीण जीवन के अलावा लाठी शब्द से पुलिस के लाठीचार्ज की याद भी आती है। गुस्साई भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पहले पुलिस लाठीचार्ज का ही सहारा अक्सर लेती है।
क्या आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की नज़र में लाठी क्या है?
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फ़ैसले में टिप्पणी की है कि-
‘गांव के लोग लाठी लेकर चलते हैं, जो उनकी पहचान बन गई है। लाठी का प्रयोग हथियार की तरह हमले के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसे सामान्य तौर पर हमले का हथियार नहीं माना जा सकता।’
सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी करते हुए हत्या के एक केस को ग़ैर-इरादतन हत्या के केस में बदल दिया और दोषी पाए गए व्यक्ति को जेल में गुजारी गई अवधि को ही उसकी सज़ा मानते हुए बरी करने का आदेश सुनाया।
– वर्ष 2004 में एक ग्रामीण ने झगड़ा हो जाने पर दूसरे पर लाठी से हमला कर दिया था
– सिर पर चोट लगने की वजह से घायल की बाद में अस्पताल में मृत्यु हो गई
– अभियुक्त पर हत्या का केस चला और उसे उम्रक़ैद सुनाई गई
– सुप्रीम कोर्ट ने ये दलील मान ली कि अभियुक्त ने लाठी हत्या के इरादे से नहीं चलाई थी
दूसरी तरह से कहें, तो लाठी को हर सूरत में जानलेवा हथियार नहीं माना जा सकता यानी उसकी तुलना चाकू और बंदूक जैसे हथियारों से नहीं की जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में भले ही लाठी को सामान्य ग्रामीण जीवन के प्रतीक के तौर पर लिया हो, लेकिन अगर किसी पर लाठी से हमला उसकी हत्या के इरादे से ही किया जाएगा, तो फिर केस हत्या का ही चलेगा। हां, अगर गांव में रहने वाले किसी व्यक्ति ने परिस्थितिवश उपजे गुस्से के आवेग में दूसरे पर लाठी चला दी हो, तो फिर मामला हत्या का नहीं, ग़ैर-इरादतन हत्या का ही बनता है।
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