केंद्र सरकार ने बड़े पदों पर सीधी नियुक्तियों का सिलसिला शुरू किया, तो बड़े बाबुओं के माथे पर त्यौरियां पड़ने लगी हैं। हाल ही में संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिविल सेवाओं को लेकर अपने नज़रिये का इज़हार किया, तो आईएएस और आईपीएस रह चुके अफ़सर सोशल मीडिया पर इसका विरोध करने लगे। दो नए शब्द चर्चा में आ गए हैं। पहला है
कमिटेड ब्यूरोक्रेसी
(और दूसरा है)
लॉयल ब्यूरोक्रेसी
– हाल ही में केंद्रीय स्तर पर संयुक्त सचिव और डायरेक्टर के 30 पदों के लिए कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर नौकरियों का विज्ञापन आया
(तो बहस और तेज़ हो गई।)
– इस तरह की नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान लागू नहीं है
– 2020 में भी लिटेरल इंट्री के जरिए नौ बड़े पदों पर भर्ती की गई थी
ये सही है कि सिविल सेवाओं को लेकर युवाओं में क्रेज़ कम हुआ है। एक तथ्य और जान लीजिए-
– आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू अखिल भारतीय सेवाओं को समाप्त करना चाहते थे
(लेकिन)
– वल्लभ भाई पटेल ने अखिल भारतीय सेवाओं को ख़त्म नहीं होने दिया
प्रशासनिक सुधार आयोग और नीति आयोग की कमेटी ने भी मौजूदा हालात पर चिंता जताई है। कुछ सुझाव सरकार को दिए हैं। नीति आयोग ने वर्ष 2018 की रिपोर्ट में इसे गंभीरता से लिया था। THE STRATEGY FOR NEW INDIA @ 75 नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि
– वर्ष 2022 तक भारत के विकास के उद्देश्य हासिल करने के लिए सिविल सेवा में भर्ती, ट्रेनिंग और कामकाज की समीक्षा के लिए व्यापक सुधार की जरूरत है
– केंद्र सरकार ने भी मिशन कर्मयोगी कार्यक्रम के तहत सिविल सेवकों के ऐसे प्रशिक्षण पर ज़ोर दिया
– 2005 में बने दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने 2009 में सरकार को रिपोर्ट सौंपी
– आयोग ने 15 रिपोर्टें सरकार को सौंपी और 1514 सिफ़ारिशें कीं, जिनमें से 1183 सरकार ने मान लीं
– नीति आयोग के मुताबिक़ बहुत सी सिफ़ारिशों पर अमल अभी तक नहीं किया गय़ा है
– रिपोर्टों के मुताबिक़ पद के अनुसार योग्यता नहीं होना चिंता की सबसे बड़ी बात है
– रिपोर्ट कहती है कि हर पांच साल में इस बात की समीक्षा होनी चाहिए कि कैसे अफ़सरों की ज़रूरत है, उसी हिसाब से भर्तियां होनी चाहिए
एक सुझाव आम तौर पर दिया जाता है कि भर्ती परीक्षा में मिले नंबरों के आधार पर सेवाओं का आवंटन नहीं होना चाहिए।
– चुने हुए युवाओं को पहले ट्रेनिंग मिले और इस दौरान आंका जाए कि किसमें IAS या IPS या IFS अफसर बनने की योग्यता है
– प्रमोशन का आधार कार्यकाल की अवधि नहीं, बल्कि योग्यता ही होना चाहिए
आईएएस, आईपीएस अफ़सर राज्यों में भेजे जाते हैं। लेकिन अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी होते हुए भी कई बार वे राज्य सरकारों के राजनैतिक हित साधने में लग जाते हैं। कई बार तो केंद्र के आदेश तक नहीं मानते। पश्चिम बंगाल में बहुत बार हम ये देख चुके हैं। ऐसे में अब इन ऑल इंडिया सर्विसेज़ को लेकर व्यापक सोच-विचार की ज़रूरत है।
Leave a Reply