अगर आपको हॉर्न बजाने की आदत है, तो आप देश का कितना नुकसान कर रहे हैं, देखिए TOSS की ये SPECIAL REPORT
ये वीडियो आप तक पहुंचाने से पहले मुझे अपनी एक ग़ज़ल का एक मतला और एक शेर याद आ रहा है, पहले वो सुन लीजिए- अर्ज़ है-
मेरी हर बात को ताने की तरह लेते हैं, आप भी मुझको ज़माने की तरह लेते हैं…
हम भी फिर चीख़ कर भीतर के बियाबानों में शोर की हद को तराने की तरह लेते हैं।
साफ़ है कि जब हमें किसी शोर को दबाना होता है, तो हम और ज़्यादा शोर करने लगते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शोर इतना बढ़ता जा रहा है कि हम बहरे होने लगे हैं। पागलपन की हद तक चिड़चिड़े होकर आपा खोने लगे हैं। शोर-शराबे की वजह से देश की दिमाग़ी सेहत ख़राब होने लगी है।
दिल्ली-एनसीआर में समेत पूरे देश में वायु और जल प्रदूषण को लेकर बहुत चर्चा होती है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण को नज़रअंदाज़ किया जाता है। वजह है कि ध्वनि प्रदूषण के मुक़ाबले हवा और पानी का प्रदूषण दिखता है और सीधे महसूस होता है। हवा और पानी मूलभूत ज़रूरतें हैं, जबकि ध्वनि सैकेंडरी। लेकिन जिस तरह बढ़ता हुआ शोरगुल लोगों की दिमाग़ी सेहत ख़राब कर रहा है, उसे देखते हुए अब लगता है कि ध्वनि प्रदूषण के प्रति सचेत होना ज़रूरी है। पर अफ़सोस कि सरकारी मशीनरी और हम ख़ुद इस ओर उदासीन ही हैं।
वाहनों से हो रहे ध्वनि प्रदूषण के हाल के आंकड़े चौंकाते हैं
शोर को डेसिबल में नापा जाता है। रिहायशी इलाक़ों में 55 डेसिबल से ज़्यादा शोर ख़तरनाक होता है, इसी तरह साइलेंस ज़ोन में 50 डेसिबल तक शोर और कमर्शियल ज़ोन में शोर की मात्रा 65 डेसिबल से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए।
शहरों में शोर की बड़ी वजह वाहन हैं। रेड लाइटों पर लगातार हॉर्न बजाना हम भारतीयों की आदत है। ग्रीन लाइट होने पर पीछे वाले वाहन तब तक बेवजह हॉर्न बजाते हैं, जब तक वे सिग्नल क्रॉस नहीं कर लेते। ट्रेफ़िक जाम वाले इलाक़ों में हॉर्न का शोर असहनीय होता है, लेकिन ध्वनि प्रदूषण पर 10 हज़ार रुपये तक जुर्माने, तीन महीने की सज़ा और तीन महीने तक ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने के प्रावधान के बावजूद लोग मानते ही नहीं। वजह साफ़ है कि ट्रैफ़िक पुलिस ध्वनि प्रदूषण को गंभीरता से नहीं लेती। दूसरे नियम तोड़ने के मुक़ाबले बहुत कम चालान अनावश्यक शोर के लिए किए जाते हैं। इसी तरह रात 10 बजे के बाद तेज़ संगीत बजाने पर रोक है, लेकिन परवाह कौन करता है.
दिल्ली में मंदिर मार्ग और इंडिया गेट के पास ध्वनि प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है। पीक आवर्स में इंडिया गेट पर शोर का स्तर 80 डेसिबल तक हो जाता है और मंदिर मार्ग पर ये 77 डेसिबल तक नापा गया। जुलाई, 2020 में दिल्ली में ज़्यादा शोरगुल वाले 31 इलाक़ों में से 26 इलाक़ों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर चिंताजनक था।
सभी बड़े शहरों में यही स्तिथि है। भारत उत्सवधर्मी देश है। हमारे यहां शादी-ब्याह या जन्मदिन जैसे घरेलू फंक्शन हों या धार्मिक आयोजन, हमें तेज़ आवाज़ में संगीत पसंद है। दीपावली पर तो रात भर पटाखे चलाने का रिवाज़ है ही। रोज़ पांचों वक़्त की नमाज़ की अजान के लिए देश भर में लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल होता है। बहुत से मंदिरों में भी सुबह-शाम की आरती मुहल्ले भर में गूंजती है।
शहरों में तेज़ संगीत बजाते हुए शेयरिंग ऑटो घूमते हैं। अगर आप आवाज़ कम करने के लए कहेंगे, तो ड्राइवर के साथ ही दूसरी सवारियां भी आपको अजीब सी नज़रों से देखने लगती हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि ध्वनि प्रदूषण को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाई जाए। जब हम अति का शोर करते हैं, तो सिर्फ़ इंसानियत के प्रति ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षियों के प्रति भी अपराध कर रहे होते हैं। पक्षियों की बहुत सी प्रजातियां शहरों से इसी वजह से ग़ायब हैं।
हॉर्न का ईजाद 1860 के दशक में हुआ। इससे पहले वाहनों के आगे चेतावनी के लिए लाल झंडा लगाया जाता था। असल में हॉर्न बजाने का उद्देश्य दूसरे चालक को उसकी अनदेखी के प्रति आगाह करना या फिर पैदल चालकों को चेतावनी देना है, लेकिन अब लोग हॉर्न बजाकर कुंठा और क्रोध व्यक्त करते हैं। उनके मन में पैदल चलने वालों और दूसरे वाहन चालकों के लिए सम्मान नहीं, बल्कि अपमान का भाव होता है।
ट्रैफ़िक जैसे मामलों से पैदा हो रही सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने वाले मौजूदा हालात पर चिंतित हैं। डॉक्टर आंजिक्य डी वाई पाटिल के अनुसार हॉर्न बजाने पर पूरी तरह रोक लगाना समस्या का समाधान नहीं है। चीन के शंघाई शहर में ऐसा किया गया, तो लोगों ने महिला स्वर में प्लीज़ माइंट द गैप की रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल शुरू कर दिया, जिससे शोर और बढ़ गया। कड़ा जुर्माना भी समस्या का हल नहीं है। ब्रिटेन में बेवजह हॉर्न बजाने पर एक हज़ार पाउंड यानी क़रीब एक लाख रुपये का जुर्माना होता है, लेकिन हॉर्न बेवजह बजाया गया, ये कैसे साबित होगा . बजाने वाला वाज़िब वजह ही बताएगा। समाज को बहरा होने, उन्मादी होने से बचाना है, तो हॉर्न के विकल्प के तौर पर किसी स्मार्ट तकनीक का ईजाद करना ही होगा। इससे भी ज़्यादा आत्मसंयत रहकर ही इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।
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