जेपी को क्यों लेना पड़ा ब्रह्मचर्य का व्रत?
महापुरुषों के विचार लंबे कालखंड तक जीवित रहते हैं। आज हम बात करेंगे क्रांति पुरुष जय प्रकाश नारायण यानी जेपी के जीवन से जुड़े एक महत्वपूर्ण पहलू की, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। जेपी की पत्नी प्रभावती देवी ने गांधी जी के साबरमती आश्रम में रहते हुए आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था। जेपी इससे सहमत नहीं थे और इसे लेकर उन्होंने महात्मा गांधी को कई वर्ष तक पत्र लिखकर दाम्पत्य जीवन के पक्ष में तीखी टिप्पणियां की थीं। हालांकि उन्होंने दूसरी शादी की गांधी जी की सलाह भी नहीं मानी।
11 अक्टूबर, 1902 में जन्मे जेपी की शादी अक्टूबर, 1920 में बिहार के गांधीवादी नेता ब्रजकिशोर प्रसाद की बेटी प्रभावती देवी से हुई। 1922 में जेपी उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए, तो बाक़ायदा जेपी की सहमति से प्रभावती गांधी जी के साबरमती आश्रम में रहने चली गईं। मां की बीमारी की वजह से नवंबर, 1929 में जेपी को पीएचडी अधूरी छोड़ कर भारत लौटना पड़ा। तब तक ब्रह्मचर्य का व्रत ले चुकी प्रभावती उनके साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन के लिए तैयार नहीं हुईं। हालांकि उन्होंने पत्र लिखकर जेपी को अपनी इच्छा बताई थी, लेकिन जेपी को ये अंदाज़ा नहीं था कि प्रभावती उनके लौटने से पहले ही कठिन व्रत की शपथ ही ले लेंगी।
प्रभावती ने स्पष्ट किया था कि उन्होंने गांधी जी के दवाब में ब्रह्मचर्य का व्रत नहीं लिया था। उनके अनुसार गांधी जी तो उन्हें जेपी के साथ रहने की सलाह देते थे, लेकिन वे व्रत तोड़ने को तैयार नहीं हुईं। यहां ये भी जान लें कि चार बच्चों के पिता महात्मा गांधी ने भी 1906 में ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था। प्रभावती भले ही गांधी जी के दबाव से इनकार करती रही हों, लेकिन जेपी गांधी जी को ही उनके व्रत के लिए ज़िम्मेदार मानते थे।
पटना में प्रभावती ने अपने व्रत के दृढ़ संकल्प के बारे में बताया। जेपी इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे। वे दोनों वर्धा में गांधी जी के आश्रम गए। ब्रह्मचर्य पर जेपी गांधी जी से असहमत थे। वर्ष 1929 से 1936 तक इस मसले पर जेपी और गांधी जी के बीच खतो-किताबत होती रही। जेपी ने तीखे शब्दों और तर्कों का इस्तेमाल किया। लेकिन गांधी जी उन्हें प्रेम से समझाते रहे।
एक पत्र में गांधी जी ने जेपी को लिखा-
‘तुम्हारे दुख से मुझे दुख हुआ है। प्रभावती के साथ रहने की तुम्हारी इच्छा स्वाभाविक है। इस हालत में मैं उसे वर्धा रखना नहीं चाहता हूं। मिलेंगे तब बातें करेंगे।’
एक और चिट्ठी में गांधी जी ने लिखा-
‘अब मुझे कहो, मैं क्या करूं? यदि ऐसा चाहोगे कि प्रभा न मेरे पास आए और न मुझे पत्र लिखे, तो तुम्हारे संतोष के कारण मैं ऐसा प्रतिबंध भी स्वीकार कर लूंगा। प्रभावती के आदर्श बनने में मेरा हाथ है, सही है। उसका मुझे दुख नहीं है। लेकिन तुम्हारा प्रेम उसे तुम्हारे आदर्श की ओर खींच ले जाए तो मैं राजी हूंगा, मेरी जिम्मेवारी कम होगी, तुमको संतोष होगा।’
गांधी जी ने एक और पत्र में जेपी को लिखा-
‘मेरी यही अभिलाषा है कि तुम्हारा दांपत्य आदर्श बने। मेरे लिए धर्म-संकट है। प्रभा मुझे अथवा आश्रम को छोड़ना नहीं चाहती। मैं कैसे उसको निकाल दूं? मैं चाहता हूं प्रभा तुम्हारे पीछे-पीछे घूमे और तुम दोनों में जो अंतर पड़ गया है, सो दूर हो जाए। दोनों मिलकर कुछ फैसला करो। मैं तो जहां कहो, वहां सलाह दे सकता हूं। हां, कोई एक-दूसरे पर बलात्कार न करे।’
एक और पत्र में गांधी जी लिखते हैं-
‘मेरा तो दृढ़ विश्वास है कि यदि प्रभावती को विकार नहीं है, तो उसको मुक्ति दे देनी चाहिए और तुम्हें दूसरी शादी करनी चाहिए। उसमें मैं अधर्म नहीं मानता। क्या किया जाए? तुम्हारी भोगेच्छा को बलात्कार से कैसे रोका जाए? तुम तो भोगेच्छा को आवश्यक और आत्मा के लिए लाभदायी मानते हो। ऐसे अवसर पर दूसरी शादी को मैं किसी दृष्टि से बुरी चीज नहीं समझता हूं। मेरा ख़याल है कि तुम्हारे ऐसा करने से समाज को एक दृष्टांत मिलेगा। कई नवयुवक अपनी पत्नी पर बलात्कार करते हैं। कई वेश्यागमन करते हैं। कई इससे भी ज्यादा अनीति करते हैं। यहां तो प्रभावती ने कुमारी का जीवन पसंद किया है। तुम्हारी ब्रह्मचर्य की इच्छा नहीं है। इसलिए तुम प्रभावती की इच्छा के रक्षक बनते हो और अपने लिए दूसरी स्त्री ढूंढ़ते हो, इस योजना में कहीं भी मुझको बुराई प्रतीत नहीं होती है।’
गांधी जी की इस चिट्ठी ने जेपी को असहज कर दिया और उन्होंने इसे गांधी जी का ‘रुथलेस लॉजिक’ कहा था। प्रभावती के ब्रह्मचर्य व्रत पर अडिग रहने की बात को आख़िरकार उन्होंने आत्मसात कर लिया। इससे गांधी जी बहुत ख़ुश हुए थे। हालांकि बाद में एकाध मौक़े पर सीधे-सीधे उन्होंने ये नहीं माना कि वे जीवन पर्यंत ब्रह्मचर्य का व्रत निभा पाए या नहीं।
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