आंदोलन पर आमादा किसान जब ये जानेंगे, तो क्यों होगा उन्हें बहुत अफ़सोस?

कोरोना की मार के बीच पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और कुछ दूसरी जगहों के किसान राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन के नाम पर बाधा बने हुए हैं। उनकी मांग है कि किसानों की हालत सुधारने के इरादे से बनाए गए तीन कृषि सुधार क़ानून सिरे से रद्द किए जाएं, तभी वे घर लौटेंगे। आरोप है कि ये किसान विपक्ष के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। मोदी सरकार जब देश भर के किसानों की भलाई में जुटी है, तब ये किसान स्वार्थ की राजनीति के शिकार हो रहे हैं।

आइए एक नज़र डालते हैं कि देश भर में किसानों के लिए क्या-क्या किया जा रहा है-

MSP पर गेहूं की रिकॉर्ड ख़रीद
2 जून, 2021 तक का आंकड़ा

– 1 अप्रैल, 2021 से देश भर में 411.12 लाख मीट्रिक टन गेहूं की रिकॉर्ड ख़रीद हुई
– क़रीब 44.43 लाख किसानों से MSP पर गेहूं ख़रीदा गया
– 76 हज़ार करोड़ से ज़्यादा रुपये DBT के ज़रिए किसानों के खातों में भेजे गए
– कुल ट्रांसफ़र किए गए पैसों में से सबसे ज़्यादा पंजाब के किसानों को मिले
– पंजाब के किसानों के खाते में 26 हज़ार, 103 करोड़ रुपये से ज़्यादा भेजे गए
– हरियाणा के किसानों को 16 हज़ार, 706 करोड़ रुपये केंद्र सरकार से गेहूं ख़रीद के बदले में मिले
– पिछले साल इसी अवधि में 389.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं ख़रीदा गया था

– हरियाणा, यूपी, एमपी, बिहार, राजस्थान, हिमाचल, दिल्ली, महाराष्ट्र और जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों में गेहूं ख़रीद जारी है
– इस साल ‘एक राष्ट्र, एक MSP, एक DBT’ के तहत गेहूं ख़रीद का पैसा तुरंत सीधे किसानों के खातों में भेजा जा रहा है

– केंद्र सरकार ने सरसों का MSP रखा है 4650 रुपये क्लिंटल, लेकिन बाज़ार में यह 7,900 रुपये के क़रीब तक बिका है
– 24 मई, 2021 को कुछ मंडियों में गेहूं का भाव भी MSP से ऊपर पहुंच गया
– महाराष्ट्र की दौंड मंडी में गेहूं 2,000 रुपये और यूपी के शिकोहाबाद में 1985 रुपये प्रति क्विंटल तक जा पहुंचा

किसान आंदोलन के कारण केंद्र सरकार ने तीनों कृषि क़ानूनों पर अमल अभी रोक रखा है, फिर भी खुले बाज़ार में किसानों को एमएसपी से ज़्यादा दाम मिल रहे हैं। ज़ाहिर है कि

– कृषि क़ानूनों के दबाव में ही खुली मंडियों में गेहूं और सरसों का दाम इस सीज़न में MSP से ज़्यादा है
– ऐसा उदाहरण पेश कर APMC यानी मंडी व्यवस्था किसानों को भविष्य के प्रति आश्वस्त करना चाहती है
– किसानों को एक और बहुत बड़ा फ़ायदा कृषि क़ानूनों के दबाव में यह होने वाला है कि मंडियों से उन्हें होने वाला भुगतान बहुत लटकेगा नहीं
– क्योंकि केंद्र सरकार फ़सल ख़रीद की क़ीमत सीधे किसानों के खाते में डाल रही है, लिहाज़ा खुला बाज़ार भी ऐसा करने को मजबूर होगा

किसानों को यह भी समझना चाहिए कि कोरोना से निपटने के लिए इंतज़ामों की वजह से सरकारी ख़ज़ाने पर भारी दबाव है, इसके बावजूद केंद्र सरकार ने सम्मान निधि की राशि किसानों के खाते में डाली है। ऐसे में केंद्र की मंशा पर सवाल उठाना महज़ राजनीति नहीं, तो क्या है? ज़ाहिर है कि दिल्ली के गाज़ीपुर बॉर्डर पर जून-जुलाई, 2024 के आम चुनाव तक डटे रहने के जो बयान किसान नेताओं ने दिए हैं, उससे साफ़ है कि आंदोलन के नेतृत्व का उद्देश्य सिर्फ़ केंद्र और यूपी सरकार के ख़िलाफ़ माहौल बना कर आगामी चुनावों में राजनैतिक हित साधना भर है। किसानों की बेहतरी से उनका कोई लेना-देना नहीं है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *