क्या योगी-मोदी का विरोध ही किसान आंदोलन का इकलौता एजेंडा है?

दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर डटे किसान नेता राकेश टिकैत ने 26 मई को काला दिवस मनाने से पहले कहा कि या तो 2022 में या फिर जून-जुलाई, 2024 में तीनों कृषि क़ानून वापस हो जाएंगे, उन्हें यह पूरा विश्वास है। मतलब साफ़ है कि मोदी सरकार तो तीनों क़ानून सिरे से वापस लेगी नहीं। ऐसे में

– टिकैत मानते हैं कि वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में बीजेपी हार जाएगी और फिर मई, 2024 के आम चुनाव में केंद्र में एनडीए हार जाएगी
– अब बड़ा सवाल है कि अगर टिकैत को वाक़ई ये भरोसा है, तो फिर दिल्ली की सीमाओं को बंधक बनाने की क्या ज़रूरत है?
– टिकैत और दूसरे किसान घर जाएं और हुक्का गुड़गुड़ाकर इंतज़ार करें

वैसे ये नई बात नहीं है कि टिकैत ने किसान आंदोलन 2024 में खत्म होने की बात कही हो। दिल्ली में 26 जनवरी को विरोध मार्च निकालने से पहले भी उन्होंने यही बात कही थी। लेकिन इस बार उनका यह बयान इस वजह से चौंका रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की कमेटी अदालत में अपनी रिपोर्ट पेश कर चुकी है। अप्रैल, 2021 में ही उसकी सिफ़ारिशों पर सर्वोच्च न्यायालय के ध्यान देने के आसार थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। लेकिन निकट भविष्य में कोर्ट अपनी ही कमेटी की सिफ़ारिशों पर संज्ञान ज़रूर लेगी, यह तय है। सूत्रों से मिली जानकारी के हिसाब से-

– सुप्रीम कोर्ट की कमेटी ने तीनों कृषि क़ानूनों को ख़ारिज करने जैसी कोई सिफ़ारिश नहीं की है, जो आंदोलनकारियों की मुख्य मांग है
– ऐसे में अगर कोर्ट ने कोई ऐसा फ़ॉर्मूला तय कर दिया कि कृषि क़ानूनों में रद्दोबदल तो हो, लेकिन उन्हें रद्द न करना पड़े
– तो राकेश टिकैत क्या सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला नहीं मानेंगे और जून-जुलाई, 2024 तक धरने पर बैठने पर अड़े रह पाएंगे?

टिकैत के बयान से साफ हो गया है कि किसानों के नाम पर आंदोलन आगामी उत्तर प्रदेश, पंजाब विधानसभा चुनाव और आम चुनाव में बीजेपी का विरोध करने के एकमात्र राजनैतिक उद्देश्य से किया जा रहा है। किसानों की बेहतरी से इसका दूर-दूर तक कोई लेनादेना नहीं है।

कोरोना काल में कुंभ के आयोजन पर सवाल उठाने वाले सभी लोगों और ग़ैर-बीजेपी पार्टियों ने 26 मई को किसानों के जमावड़े में काला दिवस मनाने का समर्थन किया। अजीब विरोधाभास है। राजनीति में इतना सेलेक्टिव कैसे हुआ जा सकता है?

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