-सरकार कब तक फैक्ट्री, बाजार और दफ्तरों को बंद रखेगी?
-बंद व्यापारिक गतिविधियों से पैदा हुए पहाड़ जैसे घाटे कैसे पाटे जाएंगे?
ये तमाम ऐसे सवाल हैं जो उन लोगों के मन में कौंध रहे हैं जो चाहते हैं कि सरकार लॉकडाउन को हटाकर व्यापारिक गतिविधियों को फिर से शुरू कर दे.
– जरा सोचिए जब 100 करोड़ से ज्यादा लोग घरों में बंद है तब भी कोरोना के मामले रुकने का नाम नहीं ले रहे ऐसे में अगर यातायात और भीड़ भाड़ गतिविधियों को शुरू कर दिया जाए तो यह संकट कितना गंभीर या बेकाबू हो जाएगा और लाखों लोग संक्रमित होकर मरने लगे तो इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी? जान है तो जहान है इस विचारधारा से जुड़े लोगों के लिए तर्क हो सकता है.
-लेकिन लॉकडाउन लंबे समय तक सबकुछ बंद रखना भी तो समस्या का समाधान नहीं है? समाधान तो दरअसल जल्द से जल्द बड़ी आबादी के टेस्ट करके उन्हें कॉरेंटाइन कर देना है. जिससे यह संक्रमण फैलने से रुक जाए. इसमें हम पिछड़ रहे हैं. देश में रोजाना करीब 26000 सैम्पलों की जांच हो रही है. 26 अप्रैल तक देश में कुल 5 लाख लोगों के कोविड परिक्षण हो पाए हैं. 130 करोड़ की आबादी में ये सैंपल ऊंट के मुंह में जीरा भी नहीं..
बड़े सवाल यह है कि –
सरकार की ओर से फंड दिए जाने के बाद भी अभी तक देश में बड़े पैमाने पर लैब तैयार क्यों नहीं की गईं?
तेजी से कोविड परिक्षण करने के लिए कोई रास्ते क्यों नहीं निकाले गए…
लंबे समय की बंदी – गरीबी, बेगारी और भुखमरी का कारण बन सकती है.
फिर रास्ता क्या? (TOSS)
देश के जिन हिस्सों में कोरोना का एक भी केस नहीं उनको चिन्हित करके नियम शर्तों के साथ वहां गतिविधियां शुरू होनी चाहिए और जल्द अधिकांश आबादी का टेस्ट करने की जवाबदेही तय होनी चाहिए.
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