एक कहावत है कि जब रोम जल रहा था, नीरो चैन की वंशी बजा रहा था। कोरोना काल में कांग्रेस, उससे निकली तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी खुलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नीरो साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
पहली बात तो यह है कि
– कोरोना काल में बहुत से संक्रमित लोग देश भर में रोज़ाना ठीक हो रहे हैं
– ऐसे में टॉस का मानना है कि केंद्र सरकार कुछ कर ही नहीं रही, ये आरोप सिरे से ग़लत है
दूसरा बड़ा सवाल ये है कि
– संकट काल में चैन की वंशी बजाना अगर अपराध है, तो उस समय कोप भवन में बैठकर जो भी हो रहा है, उसकी सिर्फ़ आलोचना ही करना क्या उस श्रेणी से भी बड़ा अपराध नहीं है?
– संकट काल में अगर विपक्ष सिर्फ़ आलोचना करने का काम करता है, तो फिर उसे नीरो से बड़ा खलनायक क्यों नहीं कहा जाएगा?
राहुल गांधी और सोनिया गांधी समेत कांग्रेस के कई नेता ट्वीट कर और चिट्ठियां लिखकर केंद्र सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि
– क्या केंद्र में विपक्षी पार्टियों का काम हर मसले पर सत्ता पक्ष का सिर्फ़ विरोध करना ही है?
– संकट काल में क्या विपक्षी पार्टियों की राज्य सरकारों को केंद्र के साथ तालमेल कर काम नहीं करना चाहिए?
(अगर करना चाहिए तो फिर ख़ासकर)
– राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और दिल्ली की सरकारों ने केंद्र के साथ क्या सहयोग किया?
दिल्ली सरकार ने तो अजीब रवैया अपना लिया है। सरकार ने ऑक्सीज़न की कमी के लिए ऐसा माहौल बनाया कि दिल्ली वालों को लगे कि मोदी सरकार ही इसके लिए ज़िम्मेदार है। सप्लाई ठीक हो जाती है, तो मुख्यमंत्री या कोई दूसरा नेता केंद्र सरकार को धन्यवाद देने में देर नहीं लगाता, लेकिन पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता उसी समय कोरोना को लेकर किसी और मामले में मोदी सरकार को घेरने में लग जाते हैं।
– मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मोदी सरकार को लेकर नर्मी भरे बयान जारी करते हैं
– ऑक्सीज़न की क़िल्लत का मुद्दा ख़त्म होता है, तो वैक्सीन की कमी पर अपना दामन पाक-साफ़ बताने की कोशिश होने लगती है
– उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ट्वीट करते हैं-
– “देश के युवाओं की जान दांव पर लगाकर उन्हें कोरोना से मरने के लिए मजबूर छोड़कर 6.6 करोड़ वैक्सीन विदेशों में बेच आए
– अपने ही देश के नौजवानों के हिस्से की वैक्सीन पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, ओमान… 93 देशों को दे दी…”
यह सोशल मीडिया पोस्ट ऐसे समय में आई, जब ऑक्सीज़न का मुद्दा क़रीब-क़रीब हल हो चुका था।
– सवाल है कि 93 देशों में से सिर्फ़ चार मुस्लिम देशों के नाम ही उप-मुख्यमंत्री ने क्यों लिखे, इसके ज़रिये आप क्या साधने का इरादा रखती है?
– साफ़ है कि कोरोना महामारी से निपटने की मंशा की बजाए इरादा राजनैतिक हित साधना भर है
– लोग कोरोना से मर रहे हैं, आप इंतज़ामों पर ध्यान देने की बजाए केंद्र सरकार को घेरने की राजनीति में मस्त है
– इसके लिए हिंदू और मुस्लिम के बीच खाई और चौड़ी होती हो, तो हो! आम आदमी पार्टी को इसके कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
इससे पहले 28 अप्रैल को पूर्व केंद्रीय गृह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट किया कि कोरोना पर केंद्र सरकार झूठ बोल रही है।
…देश के लोगों को मूर्ख समझने वाली सरकार के ख़िलाफ़ देश की जनता को विद्रोह कर देना चाहिए।
-पी चिदंबरम
देश के लोग ही तय करें कि इस तरह की राजनीति को क्या कहेंगे? क्या इसमें कहीं से भी देश हित की चिंता झलकती है? या फिर कोरोना की आग पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने की स्वार्थी आतुरता ही नज़र आती है?
– दिल्ली सरकार के पास इस बात का कोई जवाब है कि उसके मोहल्ला क्लीनिक कोरोना जांच या फिर वैक्सीन लगाने के केंद्र बनाने के लिए भी क्यों काम नहीं आए?
– दिल्ली सरकार पूछती है कि क्या कोरोना से निपटने के लिए सब कुछ उसे ही करना पड़ेगा? केंद्र सरकार की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?
– जवाब तो यही है कि कम से कम दिल्ली में तो केंद्र सरकार ही सब कुछ करती दिख रही है, आप केवल गाल बजा रही है और इस बार दिल्ली वालों को यह समझ में आ भी रहा है
लब्बोलुआब यह है कि जब इंसानियत का अस्तित्व ख़तरे में हो, तब राजनीति करने के बजाए लोगों की जान बचाने की कोशिश करनी चाहिए। अफ़सोस की बात है कि भारत में सभी राजनैतिक पार्टियां यह बात समझते हुए भी इसे स्वीकार करना नहीं चाहतीं। अपने गिरेबान में झांकने की बजाए वे दूसरों पर कीचड़ उछालने में ही विश्वास करती हैं।
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