आमतौर पर माना जाता है कि दिल्ली पुलिस बहुत सख़्ती बरतने वाली फ़ोर्स है। ट्रैफ़िक नियमों के पालन के मामले में एनसीआर के दूसरे इलाक़ों में आप भले ही लापरवाही बरत लें, लेकिन दिल्ली में घुसते ही अलर्ट होना पड़ता है। लेकिन ये जानकर हैरानी और अफ़सोस, दोनों होते हैं कि दिल्ली पुलिस के जवानों के हौसले पस्त होते जा रहे हैं। ऐसा नहीं है, तो फिर ये क्यों हो रहा है कि हर 35 दिन में दिल्ली पुलिस का एक जवान आत्महत्या कर रहा है। क्या इसकी वजह काम का तनाव है, आइए देखते हैं टॉस की इस ख़ास रिपोर्ट में-
26 जनवरी को दिल्ली के राजपथ पर शान से राष्ट्रपति को सलामी देते ये हैं दिल्ली पुलिस के जवान। इनकी आन-बान और शान देखते ही बनती है, लेकिन जब ये पता चलता है कि हर 35 दिन में दिल्ली पुलिस का एक जवान ख़ुद ही अपनी जान ले लेता है, तो मन विचलित हो जाता है। आरटीआई के तहत दिल्ली पुलिस ने जानकारी दी है कि
– जनवरी, 2017 से 30 जून, 2020 तक दिल्ली पुलिस के 37 जवानों और अधिकारियों ने ख़ुदकुशी की ।
– आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा संख्या सिपाही और हवलदारों की थी ।
– 14 पुलिस कर्मियों ने ड्यूटी के दौरान ही मौत को गले लगाया ।
दिल्ली पुलिस के जवानों की आत्महत्या का कारण काम का दबाव माना जा रहा है। लंबे समय तक छुट्टी नहीं मिलना, अफ़सरों का अपमानजनक रवैया और घरेलू परेशानियां, इन सभी वजहों से जवानों में तनाव का स्तर बढ़ रहा है। काम के बोझ की बड़ी वजह दिल्ली पुलिस में तय पदों को भरा नहीं जाना भी है।
दिल्ली पुलिस पर 23 सितंबर, 2020 को संसद में पेश की गई कैग की रिपोर्ट के अनुसार :-
– ‘केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 12,518 पदों को मंजूरी देते हुए सलाह दी थी कि पहले 3,139 पदों को भरकर काम शुरू किया जाए और इन कर्मियों की जमीन पर तैनाती के बाद 9,379 पदों पर भर्ती की जाए। लेकिन दिल्ली पुलिस 3,139 पदों पर भर्तियां करने में असफल रही, जिसकी वजह से 9,379 मंजूर पदों के लिए भी कार्य आगे नहीं बढ़ सका।’
– दिल्ली में 2013 के मुक़ाबले 2019 में दर्ज अपराधों की संख्या 275 फ़ीसदी बढ़ी है।
– यानी काम पौने तीन सौ फ़ीसदी ज्यादा और काम करने वाले बहुत कम।
दिल्ली पुलिस के आला अधिकारी कब इस ओर ध्यान देंगे, पता नहीं। काम के बोझ से पुलिस के जवान तनाव में आ रहे हैं, पद भी स्वीकृत हैं, फिर भर्ती क्यों नहीं हो रही है? साथ ही पुलिस कर्मियों का मनोबल बढ़ाने वाले दूसरे क़दम भी तुरंत उठाए जाने चाहिए। किसी पुलिसकर्मी के ख़ुदकुशी करने पर अदालतें जब ख़ुद संज्ञान लेकर आला अफ़सरों के गले पकड़ेंगी, क्या तभी उनकी आंखें खुलेंगी? टॉस का मानना है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय को भी इस ओर ध्यान देना चाहिए।
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