लोगों को बचाने वाले क्यों देते हैं अपनी जान? ख़ुदकुशी के लिए सिस्टम पर कब चलेगा केस?

डॉक्टर ज़मीन के भगवान की तरह ही होते हैं, लेकिन अगर जान बचाने वाले डॉक्टर ही अपनी जीवन लीला ख़त्म करने लगें, तो बहुत अफ़सोस होना लाज़िमी है। तब तो और दुख होता है, जब दिल्ली के एम्स जैसे देश के सबसे बड़े और साधन संपन्न अस्पतालों के डॉक्टर अवसादग्रस्त होकर असमय ही ज़िंदगी का साथ छोड़ रहे हों। एम्स में मेडिकल की पढ़ाई और वहां नौकरी पाना मेधावियों का सपना होता है। लेकिन हाल ही में जिस तरह वहां तीन डॉक्टरों ने आत्महत्या की है, उससे साबित होता है कि भारतीय समाज में अवसाद की जड़ें बहुत गहराई तक जमती जा रही हैं।


राजधानी दिल्ली में एम्स में काम करने वाले मेधावी बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर मोहित का शव उनके घर से मिला… सुसाइड नोट में उन्होंने लिखा था- ”ज़िंदगी में हर चीज़ किसी को नहीं मिल पाती, तो उसके पीछे नहीं भागना चाहिए.. ये मेरी ज़िंदगी है, मेरी पसंद है। इसलिए इसे मैं ही ख़त्म कर रहा हूं .”

एम्स में एमबीबीएस की तीसरे साल की पढ़ाई कर रहे विकास ने हॉस्टल की पांचवीं मंज़िल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली .वे अवसाद में थे और उनका इलाज एम्स में ही चल रहा था .

एम्स के ही मनोविज्ञान विभाग में जूनियर रेज़ीडेंट डॉक्टर अनुराग ने हॉस्टल की 10वीं मंज़िल से कूदकर जान दे दी। अनुराग भी अवसाद का इलाज करा रहे थे।

एम्स से जुड़े सफल युवाओं की ख़ुदकुशी गंभीर सवाल खड़े करती है। ग़ौर किया जाए, तो ख़ुदकुशी का हर मामला एक तरह से हत्या का ही मामला है। कोई किसी को मार दे, तो हत्यारा कहलाता है, इसी तरह ख़ुद को मारना भी अपनी हत्या ही है। दूसरे की जान लेने के मामले में हत्यारे को सज़ा मिलती है, लेकिन ख़ुद के हत्यारे पर केस नहीं चलाया जा सकता । चिंता की बात ये है कि भारत में आत्महत्या के केस बढ़ रहे हैं। साफ़ है कि जीवन स्तर भले ही चमक-दमक वाला होता जा रहा हो, जीवन जीने की परिस्थितियां जटिलतर होती जा रही हैं।
ये भी देख लें कि एम्स जैसे संस्थानों में दाख़िले के तलबग़ार युवाओं में तनाव की क्या स्तिथि है । मेडिकल, आईआईटी, आईआईएम प्रवेश परीक्षा में कामयाबी के लिए राजस्थान के कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों में देश भर के छात्र-छात्राएं उमड़ते हैं। वे कितने तनाव में रहते हैं, इसका पता वहां ख़ुदकुशी के आंकड़ों से चलता है।

कोटा में संभावनाओं का अंत

  1. वर्ष 2018 में 19 युवाओं ने आत्महत्या की
  2. वर्ष 2017 में सात मेधावियों ने जान दी
  3. प्वाइंटर- वर्ष 2016 में 18 युवाओं ने जीवन ख़त्म किया
  4. प्वाइंटर- वर्ष 2015 में 31 छात्र-छात्राओं ने जान दी
  5. प्वाइंटर- वर्ष 2014 में 45 युवाओं ने जीवन ख़त्म किया

ये जानकर बहुत दुख होता है कि बेहद तनाव में रहते हुए कोचिंग लेकर जो बहुत से मेधावी मेडिकल और आईआईटी में दाख़िला पा लेते हैं, उनमें से कई पढ़ाई के दौरान आत्महत्या कर लेते हैं और कई पढ़ाई पूरी कर नौकरी पा जाने के बाद।

भारत में संभावनाओं का अंत

  1. वर्ष 2018 में हर 24 घंटे में 28 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की
  2. वर्ष 2018 में 10 हज़ार से ज़्यादा विद्यार्थियों ने ख़ुद की जान ली
  3.  वर्ष 2017 में 9505 विद्यार्थियों ने जान दी
  4. वर्ष 2016 में 9474 छात्र-छात्राओं ने ख़ुदकुशी की
  5. वर्ष 2015 में 8934, वर्ष 2014 में 8068 विद्यार्थियों ने जान दी
  6. वर्ष 2018 में किसानों से ज़्यादा बेरोज़गारों ने आत्महत्या की

चिंता की बात है कि भारत में युवाओं की आत्महत्या के आंकड़े बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ 2018 में हर 24 घंटे में 28 छात्र-छात्राओं यानी युवाओं ने आत्महत्या की। साल भर में 10 हज़ार से ज़्यादा विद्यार्थी ख़ुद ही का…

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